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Daily Answer Writing
01 November 2023

Q. The World Bank's recent study reveals growing flood risk in Indian cities from urban expansion in flood-prone areas, sparking concerns over unsustainable urbanization. What are the main risks linked to this expansion, and what steps can be taken to ensure sustainable urban planning?
(GS-01, 15 Marks, 250 Words)

प्र. विश्व बैंक के हालिया अध्ययन से पता चलता है कि बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में शहरी विस्तार से भारतीय शहरों में बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है, जिससे अस्थिर शहरीकरण पर चिंता बढ़ गई है। इस विस्तार से जुड़े मुख्य जोखिम क्या हैं और स्थायी शहरी नियोजन सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
(जीएस-01, 15 अंक, 250 शब्द)

Approach:

  • Introduction: Discuss this study of the world bank in brief.
  • Body: Highlight the main risks linked to this expansion, and mention steps that can be taken to ensure sustainable urban planning.
  • Conclusion: Provide a relevant conclusion by mentioning SDGs goals.
     

Model Answer:

India’s urban areas have been flooding more and more often, destroying lives and livelihoods. According to this study, since 1985, human settlements in flood prone areas have more than doubled. During the last century, the city’s population grew from around 1.6 lakh to more than a crore. To accommodate these people, the city expanded — but new localities overlooked the local topography.

 

Main risks of urban expansion in flood-prone areas:

  1. Loss of life and property: Floods can cause widespread damage to homes, businesses, and infrastructure, leading to loss of life and livelihoods. For example, the 2015 floods in Chennai, India, killed over 289 people, submerged 23.25 lakh homes etc.

  2. Disruption of essential services: Floods can also disrupt essential services such as water supply, sanitation, and electricity, which can have a significant impact on public health and well-being.

  3. Habitat loss and fragmentation: Urban expansion can destroy or fragment natural habitats (like lakes in urban areas), which can displace wildlife and reduce biodiversity.

  4. Increased flooding frequency: Urban expansion often encroaches upon the natural floodplains of rivers, which can contribute to a higher occurrence of floods due to the reduction in floodplain area.

  5. Displacement: Flooding can displace people from their homes and livelihoods.

  6. Climate Change Amplification: Urban expansion in flood-prone areas can exacerbate the effects of climate change by altering local weather patterns and increasing the frequency and intensity of floods.

  7. Increased risk of diseases: Floods can create breeding grounds for mosquitoes and other disease-carrying insects, which can increase the risk of diseases such as malaria and dengue fever.

  8. Social Disparities: Vulnerable populations, often residing in informal settlements in flood-prone areas, are disproportionately affected by flooding.

  9. Risk to Cultural Heritage: Many historic and culturally significant areas are located in flood-prone zones. Urban expansion in these areas puts invaluable cultural and historical heritage at risk.

  10. Transportation Disruptions: Flooding can disrupt transportation networks, affecting daily commuting and business operations.

 

Steps to ensure sustainable urban planning:

NITI Aayog's Report on Reforms in Urban Planning Capacity in India, made several recommendations, including:   

  • Establish a National Urban Planning Commission (NUPC) to provide strategic guidance and coordination on urban planning matters.
  • Introduce a specialized post-graduation course in urban planning to address specific needs.
  • Develop an online portal for registering all urban planners of the country to share best practices.

 

Other Measures:                                                            

  1. Identify and map flood-prone areas: This information can then be used to inform land use planning and development decisions.

  2. Restrict development in flood-prone areas: This can be done through zoning regulations and other land use planning measures.

  3. Early Warning Systems: Develop and implement effective early warning systems to provide timely information to residents in flood-prone areas, allowing them to take precautionary measures. For instance, Recently, a flood warning system - known as IFLOWS-Mumbai has been installed.

  4. Promote green infrastructure: Floodplains and wetlands play an important role in flood control and stormwater management. They should be protected from development and encroachment.

  5. Build flood defenses: Flood control infrastructure, such as dams, levees, and drainage systems, can help to reduce the risk of flooding in urban areas.

  6. Relocation of people from flood-prone areas: Promote affordable housing alternatives in safer areas to discourage people from settling in flood-prone regions.

  7. Public awareness and education: Cities need to educate the public about the risks of flooding and how to prepare for and respond to floods.

  8. Nature-based solutions: These solutions use natural ecosystems to reduce flood risk. For example, the city of Chennai in India has restored mangroves and wetlands to help reduce coastal flooding.

 

Conclusion:

Urban expansion in flood-prone areas is a one of the major challenges that India is facing. By taking above mentioned steps India can reduce flood risk and ensure sustainable urban planning. It would help in fulfilling the SDG 6 (clean water and sanitation for all), SDG 11 (Sustainable Cities and Communities), SDG 13 (Climate Action) and SDG 14 (Life on Land).

दृष्टिकोण:

  • परिचय: विश्व बैंक के इस अध्ययन पर संक्षेप में चर्चा करें।
  • मुख्य भाग: बाढ़ क्षेत्रों में शहरी  विस्तार से जुड़े मुख्य जोखिमों पर प्रकाश डालें, और उन कदमों का उल्लेख करें जो संधारणीय शहरी नियोजन सुनिश्चित करने के लिए उठाए जा सकते हैं।
  • निष्कर्ष: एसडीजी लक्ष्यों का उल्लेख करते हुए एक प्रासंगिक निष्कर्ष प्रदान करें।

 

मॉडल उत्तर:

भारत के शहरी इलाकों में लगातार बाढ़ आ रही है, जिससे जन-जीवन और आजीविकाएं नष्ट हो रही है। विश्व बैंक के  अध्ययन के मुताबिक, 1985 के बाद से बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में मानव बस्तियां दोगुनी से भी ज्यादा हो गई हैं। पिछली शताब्दी के दौरान, शहर की जनसंख्या लगभग 1.6 लाख से बढ़कर एक करोड़ से अधिक हो गई। इन लोगों को समायोजित करने के लिए, शहर का विस्तार हुआ - लेकिन नए इलाकों में स्थानीय स्थलाकृति की अनदेखी की गई।

 

बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में शहरी विस्तार के मुख्य जोखिम:

  1. जीवन और संपत्ति की हानि: बाढ़ से घरों, व्यवसायों और बुनियादी ढांचे को बड़े पैमाने पर नुकसान हो सकता है, जिससे जन-जीवन और आजीविकाओं की हानि हो सकती है। उदाहरण के लिए, भारत के चेन्नई में 2015 की बाढ़ में 289 से अधिक लोग मारे गए, 23.25 लाख घर जलमग्न हो गए आदि।

  2. 2. आवश्यक सेवाओं का विघटन: बाढ़ की स्थिति  जल आपूर्ति, स्वच्छता और बिजली जैसी आवश्यक सेवाओं को भी बाधित कर सकती है, जिसका सार्वजनिक स्वास्थ्य और कल्याण पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।

  3. पर्यावास हानि और विखंडन: शहरी विस्तार प्राकृतिक आवासों (जैसे शहरी क्षेत्रों में झीलें) को नष्ट या खंडित कर सकता है, जो वन्यजीवों को विस्थापित कर सकता है और जैव विविधता को कम कर सकता है।

  4. बाढ़ की आवृत्ति में वृद्धि: शहरी विस्तार, अक्सर नदियों के प्राकृतिक बाढ़ क्षेत्रों का अतिक्रमण करता है, जो बाढ़ क्षेत्र में कमी के कारण बाढ़ की अधिक घटनाओं में योगदान कर सकता है।

  5. विस्थापन: बाढ़ की स्थिति, व्यापक लोगों को अपने घरों और आजीविका से विस्थापित कर सकती है।

  6. जलवायु परिवर्तन के प्रभाव में वृद्धि: बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में, शहरी विस्तार स्थानीय मौसम के पैटर्न में बदलाव और बाढ़ की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि करके जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को बढ़ा सकता है।

  7. बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है: बाढ़ मच्छरों और अन्य रोग फैलाने वाले कीड़ों के लिए प्रजनन स्थल बना सकती है, जिससे मलेरिया और डेंगू बुखार जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।

  8. सामाजिक असमानताएँ: कमजोर आबादी, जो अक्सर बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में अनौपचारिक बस्तियों में रहती है, बाढ़ से असंगत रूप से प्रभावित होती है।

  9. सांस्कृतिक विरासत के लिए ख़तरा: कई ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में स्थित हैं। इन क्षेत्रों में शहरी विस्तार से अमूल्य सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत खतरे में पड़ गयी है।

  10. परिवहन व्यवधान: बाढ़ परिवहन नेटवर्क को बाधित कर सकती है, जिससे दैनिक आवागमन और व्यावसायिक संचालन प्रभावित हो सकता है।

 

टिकाऊ शहरी नियोजन सुनिश्चित करने के लिए कदम:

भारत में शहरी नियोजन क्षमता में सुधार पर नीति आयोग की रिपोर्ट में कई सिफारिशें की गईं, जिनमें ये शामिल हैं:

  • शहरी नियोजन मामलों पर रणनीतिक मार्गदर्शन और समन्वय प्रदान करने के लिए एक राष्ट्रीय शहरी योजना आयोग (NUPC) की स्थापना करना।
  • विशिष्ट जरूरतों को पूरा करने के लिए शहरी नियोजन में एक विशेष स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम शुरू करना।
  • सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिए देश के सभी शहरी योजनाकारों को पंजीकृत करने के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल विकसित करना।

 

अन्य उपाय:

  1. बाढ़ संभावित क्षेत्रों की पहचान और उनका मानचित्रण करना: इस जानकारी का उपयोग भूमि उपयोग योजना और विकास निर्णयों को सूचित करने के लिए किया जा सकता है।

  2. बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में विकास को प्रतिबंधित करना: यह ज़ोनिंग नियमों और अन्य भूमि उपयोग योजना उपायों के माध्यम से किया जा सकता है।

  3. प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: बाढ़ संभावित क्षेत्रों में निवासियों को समय पर जानकारी प्रदान करने के लिए प्रभावी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित और कार्यान्वित करना, जिससे उन्हें एहतियाती उपाय करने की अनुमति मिल सके। उदाहरण के लिए, हाल ही में एक बाढ़ चेतावनी प्रणाली स्थापित की गई है - जिसे IFLOWS-मुंबई के नाम से जाना जाता है।

  4. हरित बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देना: बाढ़ के मैदान और आर्द्रभूमियाँ बाढ़ नियंत्रण और तूफानी जल प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्हें विकास और अतिक्रमण से बचाया जाना चाहिए.

  5. बाढ़ सुरक्षा का निर्माण करना: बाढ़ नियंत्रण बुनियादी ढाँचा, जैसे बाँध, तटबंध और जल निकासी प्रणालियाँ, शहरी क्षेत्रों में बाढ़ के खतरे को कम करने में मदद कर सकते हैं।

  6. बाढ़-प्रवण क्षेत्रों से लोगों का स्थानांतरण: लोगों को बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में बसने से हतोत्साहित करने के लिए सुरक्षित क्षेत्रों में किफायती आवास विकल्पों को बढ़ावा देना।

  7. सार्वजनिक जागरूकता और शिक्षा: शहरों को जनता को बाढ़ के खतरों और बाढ़ के लिए तैयारी और प्रतिक्रिया के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है।

  8. प्रकृति-आधारित समाधान: ये समाधान बाढ़ के जोखिम को कम करने के लिए प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र का उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, भारत के चेन्नई शहर ने तटीय बाढ़ को कम करने में मदद के लिए मैंग्रोव और आर्द्रभूमि की पुनर्बहाली की है।

 

निष्कर्ष:

बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में शहरी विस्तार उन प्रमुख चुनौतियों में से एक है, जिसका भारत सामना कर रहा है। उपर्युक्त कदम उठाकर भारत बाढ़ के जोखिम को कम कर सकता है और एक संधारणीय  शहरी नियोजन सुनिश्चित कर सकता है। यह एसडीजी 6 (सभी के लिए स्वच्छ पानी और स्वच्छता), एसडीजी 11 (संधारणीय  शहर और समुदाय), एसडीजी 13 (जलवायु कार्रवाई) और एसडीजी 14 (भूमि पर जीवन) को प्राप्त करने में मदद करेगा।

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