Que. India’s Deep Ocean Mission (DOM), an ambitious programme for underwater exploration presents challenges. Discuss.
(GS-3, 250 Words, 15 Marks)
प्रश्न: भारत का डीप ओशन मिशन (डीओएम), पानी के भीतर अन्वेषण का एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम चुनौतियां पेश करता है। चर्चा करें।
(जीएस-3, 250 शब्द, 15 अंक)
Approach:
Model Answer:
Deep Ocean Mission is India’s ambitious programme for underwater exploration, chiefly implemented by the Ministry of Earth Sciences (MoES). DOM was approved by the Union Cabinet in 2021 at a cost of nearly ₹ 4,077 crore over a five-year period in a phased manner. As part of this mission, the country is developing indigenous technologies for deep-sea mining and unveiling a crewed submersible called Matsya6000.
The mission has six pillars:
Development of technologies for Deep Sea Mining, and Manned Submersible to carry three people to a depth of 6,000 meters in the ocean.
Development of ocean climate change advisory services, involving an array of ocean observations and models to understand and provide future climate projections;
Technological innovations for the exploration and conservation of deep sea biodiversity;
Deep-ocean survey and exploration aimed at identifying potential sites of multimetal hydrothermal sulphides mineralisation along the Indian Ocean mid oceanic ridges;
Harnessing energy and fresh water from the ocean; and
Establishing an advanced Marine Station for Ocean Biology, as a hub for nurturing talent and driving new opportunities in ocean biology and blue biotechnology.
Challenges of Deep Ocean Mission:
Indeed, exploring the depths of the oceans has proved to be more challenging than exploring outer space. The fundamental distinction lies with the high pressure in the deep oceans. While outer space is akin to a near perfect vacuum, being one meter underwater puts as much pressure on an object of one square meter area as if it were carrying 10,000 kg of weight. Operating under such high pressure requires the use of meticulously designed equipment crafted from durable metals or materials.
Landing on the ocean bed also presents challenges due to its incredibly soft and muddy surface. This factor renders it exceedingly difficult for heavy vehicles to land or manoeuvre, as they would inevitably sink.
Moreover, extracting materials requires them to be pumped to the surface, an undertaking that demands a large amount of power and energy.
Unlike controlling rovers on distant planets, remotely operated vehicles prove ineffective in the deep oceans due to the absence of electromagnetic wave propagation in this medium. Visibility also poses a significant hurdle as natural light can penetrate only a few tens of meters beneath the surface.
All these intricate challenges are further compounded by factors like variations in temperature, corrosion, salinity, etc., all of which must also be dealt with.
However, India’s dedicated institutions, such as the MoES and its associated centers, including the CMLRE, INCOIS, NCCR, NCPOR, and NIOT, are collaborating with other national institutions and academia to overcome these challenges effectively. The DOM will not only contribute to the growth of India’s blue economy but also align with the United Nations’ ‘Decade of Ocean Science’ and Indian Government’s vision of sustainably harnessing the ocean’s potential for the nation’s prosperity. With each step forward, India is unveiling the secrets of the deep, making significant strides towards understanding, preserving, and utilizing our vast oceanic resources for the benefit of all.
दृष्टिकोण:
मॉडल उत्तर:
डीप ओशन मिशन (डीओएम), पानी के भीतर अन्वेषण के लिए भारत का महत्वाकांक्षी कार्यक्रम है, जिसे मुख्य रूप से पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) द्वारा क्रियान्वित किया जाता है। डीओएम को चरणबद्ध तरीके से पांच वर्ष की अवधि में लगभग ₹ 4,077 करोड़ की लागत से 2021 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा मंजूरी दी गई थी। इस मिशन के हिस्से के रूप में, भारत गहरे समुद्र में खनन के लिए स्वदेशी तकनीक विकसित कर रहा है और मत्स्य 6000 नामक एक चालक दल वाली पनडुब्बी का अनावरण कर रहा है।
इस मिशन के छह स्तंभ हैं:
गहरे समुद्र में खनन हेतु प्रौद्योगिकी का विकास, और तीन व्यक्तियों को समुद्र में 6,000 मीटर की गहराई तक ले जाने के लिए मानवयुक्त पनडुब्बी विकसित की जाएगी।
महासागरीय जलवायु परिवर्तन सलाहकार सेवाओं का विकास, इसके तहत जलवायु परिवर्तनों के भविष्यगत अनुमानों को समझने और उसी के अनुरूप सहायता प्रदान करने वाले अवलोकनों एवं मॉडलों के एक समूह का विकास किया जाएगा।
गहरे समुद्र में जैव विविधता की खोज और संरक्षण के लिए तकनीकी नवाचार;
गहरे समुद्र में सर्वेक्षण और अन्वेषण का प्राथमिक उद्देश्य, हिंद महासागर के मध्य-महासागरीय भागों के साथ बहु-धातु हाइड्रोथर्मल सल्फाइड खनिज के संभावित क्षेत्रों का पता लगाना और उनकी पहचान करना है;
महासागर से ऊर्जा और मीठा पानी (फ्रेश वाटर) का उपयोग करना; और
समुद्री जीव विज्ञान और नीली-जैव प्रौद्योगिकी (ब्लू-बायो टेक्नोलॉजी) में प्रतिभाओं के उन्नयन और नए अवसरों को आगे बढ़ाने के केंद्र के रूप में महासागर जीव विज्ञान के लिए एक उन्नत समुद्री स्टेशन की स्थापना करना।
डीप ओशन मिशन की चुनौतियाँ:
वस्तुत: बाह्य अंतरिक्ष की खोज की तुलना में महासागरों की गहराई में खोज करना अधिक चुनौतीपूर्ण साबित हुआ है। मूलभूत अंतर, गहरे महासागरों में उच्च दबाव का होना है, जबकि बाह्य अंतरिक्ष लगभग पूर्ण निर्वात के समान है, एक मीटर पानी के नीचे रहने से एक वर्ग मीटर क्षेत्र की वस्तु पर उतना ही दबाव पड़ता है, जितना कि वह 10,000 किलोग्राम वजन ले जा रहा हो। ऐसे उच्च दबाव में संचालन के लिए टिकाऊ धातुओं या सामग्रियों से सावधानीपूर्वक डिजाइन एवं तैयार किए गए उपकरणों के उपयोग की आवश्यकता होती है।
इसकी अविश्वसनीय रूप से नरम और कीचड़ भरी सतह के कारण समुद्र तल पर उतरना भी चुनौतियाँ पेश करता है। ये कारक, भारी वाहनों के लिए लैंडिंग करना या चलना बहुत कठिन बना देता है, क्योंकि उनका ऐसे में निश्चित ही डूब जाने का खतरा होता है।
इसके अलावा, खनन-सामग्री निकालने के लिए उन्हें सतह पर पंप करने की आवश्यकता होती है, यहएक ऐसा कार्य है, जिसमें बड़ी मात्रा में शक्ति और ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
दूर के ग्रहों पर रोवर्स को नियंत्रित करने के विपरीत, इस माध्यम में विद्युत चुम्बकीय तरंग प्रसार की अनुपस्थिति के कारण दूर से संचालित समुद्री वाहन, गहरे महासागरों में अप्रभावी साबित होते हैं। इसके अलावा, दृश्यता भी एक महत्वपूर्ण बाधा उत्पन्न करती है, क्योंकि प्राकृतिक प्रकाश सतह से केवल कुछ दहाई मीटर नीचे तक ही प्रवेश कर पाता है।
ये सभी जटिल चुनौतियाँ तापमान में भिन्नता, संक्षारण, लवणता आदि जैसे कारकों से और भी जटिल हो गई हैं, अत: इन सभी से भी निपटने की आवश्यकता होती है।
यद्यपि भारत के समर्पित संस्थान, जैसे MoES और इसके संबद्ध केंद्र, जिनमें CMLRE, INCOIS, NCCR, NCPOR और NIOT शामिल हैं, इन चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए अन्य राष्ट्रीय संस्थानों और शिक्षाविदों के साथ सहयोग कर रहे हैं। लेकिन, डीप ओशन मिशन (डीओएम) न केवल भारत की नीली अर्थव्यवस्था (ब्लू इकोनोमी) के विकास में योगदान देगा, बल्कि संयुक्त राष्ट्र के 'समुद्र विज्ञान के लिए दशक' और देश की समृद्धि के लिए महासागर की क्षमता का निरंतर दोहन करने के भारत सरकार के दृष्टिकोण के साथ भी सम्बद्ध होता है। इस प्रकार, प्रत्येक कदम आगे बढ़ाने के साथ, भारत गहराई के रहस्यों को उजागर कर रहा है, जो कि सभी के लाभ के लिए हमारे विशाल सामुद्रिक संसाधनों को समझने, संरक्षित करने और उपयोग करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति कर रहा है।
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