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Daily Answer Writing
09 November 2023

Que. Since its inception, the Electoral Bonds Scheme has been a subject of significant controversy. Elaborate this statement.
(GS-2, 150 Words, 10 Marks)

प्रश्न: अपनी शुरुआत से ही चुनावी बांड योजना महत्वपूर्ण विवाद का विषय रही है। इस कथन को विस्तार से समझाइये।
(जीएस-2, 150 शब्द, 10 अंक)

Approach:

  • In the Introduction, write about the Electoral bonds scheme.
  • In the body, mention the key concerns because of which this scheme has been subject of controversy.
  • Conclude your answer accordingly.

 

Model Answer:

The government implemented the electoral bonds scheme in 2018. The concept behind these bonds was to reduce the influence of black money in politics and to provide a legal and transparent mechanism for individuals and corporations to contribute to political parties.

 

Features of Electoral bonds scheme:

  • The electoral bonds are interest-free banking instruments and a citizen of India or a body incorporated in the country is eligible to purchase them.

  • These bonds are available in multiple denominations, ranging from Rs 1,000 rupees to Rs 1 crore in specified branches of the State Bank of India (SBI).

  • Electoral bonds can only be bought by making payment from a bank account.

  • The bond does not carry the name of the payee and has a life of only 15 days, during which it can be used for making donations to political parties meeting certain criteria.

  • The electoral bonds, handed over to political parties, can be encashed only through designated bank accounts by the parties.

 

Why has the Electoral bonds Scheme been a subject of significant controversy?

  • Anonymous donations: One of the main criticisms of electoral bonds is the lack of transparency regarding the source of funds. The donor’s identity is not disclosed to the public or the Election Commission, which makes it difficult to track the origin of political contributions. This opacity has led to concerns that electoral bonds could be used to launder illicit money into the political system.

  • Violation of citizens’ right to information: The electoral bonds compromise the citizen’s ‘Right to Know’, which is part of the right to freedom of expression under Article 19 of the Constitution.

  • Enables backdoor lobbying : More than 95% of the donations through Electoral Bonds have been in denominations of Rs 1 crore and above, suggesting that these are donations by either corporates or rich individuals. The kickbacks were being paid by corporations via electoral bonds to political parties in power to get favors for the corporations.

  • Uneven funding: It has also been seen that the party in power gets most of the funding and this uneven funding hasn’t been rectified even with the introduction of the electoral bond system. It has also been noted that the BJP has received the lion’s share of the donations.

  • Opens doors to shell companies: It has been argued that since the government removed the limit of 7.5 percent of the annual profit for companies to make donations to political parties and allowed Indian subsidiaries of foreign companies to make donations, shell companies can now also be used to make donations.

  • Differentiates between corporations and citizens: The scheme gives anonymity to corporate donors but citizens who are donating Rs 2000 in cash will disclose their names. This may also lead to the overshadowing of citizens' voices by corporations in a democracy.

 

Electoral bonds were introduced with the intention of bringing transparency to political funding in India. However, the controversy surrounding them persists. While electoral bonds have made it possible for political parties to receive funding through formal channels, concerns about their impact on transparency and accountability have yet to be adequately addressed. The Supreme Court is deciding whether the current electoral bonds scheme facilitates anonymous corporate funding to political parties and whether it was wrongly certified as a Finance Act. The Court's decision will affect transparency in election funding.

 

दृष्टिकोण:

  • प्रस्तावना में चुनावी बॉन्ड योजना के बारे में लिखें।
  • मुख्य भाग में, उन प्रमुख चिंताओं का उल्लेख करें जिनकी वजह से यह योजना विवाद का विषय रही है।
  • तदनुसार अपना उत्तर समाप्त करें।

 

मॉडल उत्तर:

सरकार ने 2018 में चुनावी बॉन्ड योजना लागू की। इन बांडों के पीछे की अवधारणा राजनीति में काले धन के प्रभाव को कम करना और राजनीतिक पार्टियों में योगदान करने के लिए व्यक्तियों और कॉर्पोरेट को एक कानूनी और पारदर्शी तंत्र प्रदान करना था।

 

चुनावी बॉन्ड योजना की विशेषताएँ:

  • चुनावी बॉन्ड ब्याज-मुक्त बैंकिंग उपकरण हैं और भारत का नागरिक या देश में निगमित कोई भी निकाय इन्हें खरीदने के लिए पात्र है।

  • ये बांड भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की निर्दिष्ट शाखाओं में 1,000 रुपये से लेकर 1 करोड़ रुपये तक के कई मूल्यवर्ग में उपलब्ध हैं।

  • चुनावी बॉन्ड केवल बैंक खाते से भुगतान करके ही खरीदा जा सकता है।

  • बॉन्ड पर भुगतान प्राप्तकर्ता का नाम नहीं होता है और इसकी अवधि केवल 15 दिनों की होती है, जिसके दौरान इसका उपयोग कुछ मानदंडों को पूरा करने वाले राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने के लिए किया जा सकता है।

  • राजनीतिक पार्टियों को सौंपे गए चुनावी बॉन्ड को पार्टियों द्वारा केवल निर्दिष्ट बैंक खातों के माध्यम से भुनाया जा सकता है।

 

चुनावी बॉण्ड योजना महत्वपूर्ण विवाद का विषय क्यों रही है?

  • बेनामी चंदा : चुनावी बॉन्ड की मुख्य आलोचना धन के स्रोत के संबंध में पारदर्शिता की कमी है। दानकर्ता की पहचान जनता या चुनाव आयोग के सामने उजागर नहीं की जाती है, जिससे राजनीतिक योगदान के स्रोत का पता लगाना मुश्किल हो जाता है। इस अपारदर्शिता के कारण यह चिंता पैदा हो गई है कि चुनावी बॉन्ड का इस्तेमाल राजनीतिक व्यवस्था में अवैध धन को विधिकृत करने के लिए किया जा सकता है।

  • नागरिकों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन: चुनावी बॉन्ड नागरिकों के 'जानने के अधिकार' से समझौता करते हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा है।

  • बैकडोर लॉबिंग को सक्षम बनाता है: चुनावी बॉन्ड के माध्यम से 95% से अधिक चंदा 1 करोड़ रुपये और उससे अधिक के मूल्यवर्ग में हैं, जिससे पता चलता है कि ये कॉर्पोरेट या अमीर व्यक्तियों द्वारा दिया गया दान है। अर्थात निगमों को फायदा पहुंचाने के लिए निगमों द्वारा सत्ताधारी राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड के माध्यम से रिश्वत का भुगतान किया जा रहा था।

  • असमान वित्तपोषण: यह भी देखा गया है कि सत्ता में रहने वाली पार्टी को अधिकतर फंडिंग मिलती है और चुनावी बॉन्ड प्रणाली की शुरुआत के साथ भी इस असमान  वित्तपोषण (फंडिंग) को ठीक नहीं किया जा सका है। उदहारण के लिए - वर्तमान सन्दर्भ में , चुनावी चंदे का एक बड़ा हिस्सा सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा को मिला है।

  • शेल कंपनियों के लिए दरवाजे खोलना: यह तर्क दिया गया है कि चूंकि सरकार ने राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए कंपनियों के लिए वार्षिक लाभ के 7.5 प्रतिशत की सीमा को हटा दिया है और विदेशी कंपनियों की भारतीय सहायक कंपनियों को चंदा देने की अनुमति दी है, इसलिए अब शेल (मुखौटा) कंपनियों का भी दान के लिए उपयोग किया जा सकता है।

  • कॉर्पोरेट और नागरिकों के बीच अंतर: यह योजना कॉर्पोरेट दानकर्ताओं को गुमनामी देती है, लेकिन जो नागरिक 2000 रुपये नकद चंदे के रूप में दान कर रहे हैं, वे अपने नाम का खुलासा करेंगे। इससे लोकतंत्र में कॉर्पोरेट द्वारा नागरिकों की आवाज़ को दबाना भी संभव हो सकता है।

 

भारत में राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता लाने के इरादे से चुनावी बॉन्ड पेश किए गए थे। हालांकि, इन्हें लेकर विवाद बरकरार है। यद्यपि चुनावी बॉन्ड ने राजनीतिक दलों के लिए औपचारिक चैनलों के माध्यम से धन प्राप्त करना संभव बना दिया है, लेकिन पारदर्शिता और जवाबदेही पर उनके प्रभाव के बारे में चिंताओं को अभी भी पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय, यह  निर्धारित कर रहा है कि क्या वर्तमान चुनावी बॉन्ड योजना राजनीतिक पार्टियों को गुमनाम कॉर्पोरेट फंडिंग की सुविधा प्रदान करती है और क्या इसे गलत तरीके से वित्त अधिनियम के रूप में प्रमाणित किया गया था। निश्चित रूप से, न्यायालय के फैसले से चुनावी वित्तपोषण की पारदर्शिता पर असर पड़ेगा।

Note:

1. Rename PDF file with your NAME and DATE, then upload it on the website to avoid any technical issues.
2. Kindly upload only a scanned PDF copy of your answer. Simple photographs of the answer will not be evaluated!
3. Write your NAME at the top of the answer sheet. Answer sheets without NAME will not be evaluated, in any case.

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