Que. Recently, the Delhi government has planned ‘cloud seeding’ to induce rains amid pollution. Explain the mechanism of cloud seeding. Also, discuss the applications and challenges involved in cloud seeding.
(GS-3, 250 Words, 15 Marks)
प्रश्न: दिल्ली सरकार ने प्रदूषण के बीच बारिश कराने के लिए 'क्लाउड सीडिंग' की योजना बनाई है। क्लाउड सीडिंग की क्रियाविधि को समझाइए। इसके अलावा क्लाउड सीडिंग में शामिल अनुप्रयोगों और चुनौतियों पर भी चर्चा करें।
(जीएस-3, 250 शब्द, 15 अंक)
Approach:
Model Answer:
The Delhi government announced it would initiate cloud seeding or "artificial rain" to wash away pollutants in the air in the national capital. It is a creative approach to address the Air Quality Index (AQI) concerns in the capital. Cloud seeding is a weather modification technique to enhance precipitation by dispersing substances into the air that help to saturate the clouds.
Mechanism:
Methods of Cloud seeding:
Hygroscopic cloud seeding: Hygroscopic cloud seeding involves dispersing salts through flares or explosives in lower portions of clouds. Following the dispersal, the salts grow in size. This method usually involves table salt. Hygroscopic cloud seeding has proved to have positive results in research conducted by countries such as South Africa and Mexico.
Static cloud seeding: In 2010, researchers from the University of Geneva directed infrared to the air above Berlin. The experiment showed that infrared can help atmospheric sulfur dioxide and nitrogen dioxide form particles that act as seeds and cause rainfall.
Using salts: Termed the most common method, chemicals such as silver iodide, potassium iodide and dry ice are dispersed using an aircraft or by dispersion devices located on the ground.
Applications of cloud seeding:
Agriculture: It helps to create rain, which can provide relief to drought-stricken areas. For example, the Karnataka government, in 2017, launched "Project Varshadhari", under which an aircraft was used to spray chemicals to induce rainfall.
Power generation: The cloud seeding method has been shown to augment the production of hydroelectricity in Tasmania, Australia, during the last 40 years.
Water pollution control: The process of cloud seeding can maintain minimum river flows and dilute the impact of treated wastewater discharges from industries.
Fog dispersal and cyclone modification: The US in 1962 launched "Project sky water", aimed at fog dispersal, hail suppression, and cyclone modification.
Tackle air pollution: The method of cloud seeding can be used to settle down toxic air pollutants through inducing rain.
Challenges involved in cloud seeding:
Side-effects: The chemicals used in cloud seeding may cause harm to plants, animals, people, and even the environment.
Abnormal weather patterns: It may lead to changes in climatic patterns, like places that receive rains may experience drought conditions due to the artificial process of adding chemicals to the atmosphere to stimulate rain.
High cost: Cloud seeding involves dispersing chemicals to the sky using aircraft or flare shots, which involves huge costs and logistic preparations.
Pollution: Following the initiation of cloud seeding, the rain that falls will include seeding agents such as silver iodide, dry ice, or salt. The residual silver discovered in places near cloud-seeding projects is considered toxic.
Several countries have used cloud seeding to produce rain, improve air quality and water crops in times of drought, including Mexico, the United States, China, Indonesia and Malaysia. In India so far, cloud seeding has not been tried with the purpose of reducing pollution, but only tried to deal with drought-like conditions. To get the required results, cloud seeding should be done only if the meteorological conditions for this are suitable, and if the moisture content in the local atmosphere meets the requisite criteria.
दृष्टिकोण:
मॉडल उत्तर:
दिल्ली सरकार ने घोषणा की कि वह राष्ट्रीय राजधानी में हवा से प्रदूषकों को धोने के लिए क्लाउड सीडिंग या "कृत्रिम बारिश" शुरू करेगी। यह राजधानी में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) की चिंताओं को दूर करने के लिए एक रचनात्मक दृष्टिकोण है। क्लाउड सीडिंग एक मौसम में संशोधन की एक तकनीक है, जो हवा में पदार्थों को फैलाकर वर्षा को बढ़ाती है, जो बादलों को संतृप्त करने में मदद करती है।
क्रिया-विधि:
यह प्रक्रिया एअरक्राफ्ट (विमान) या जमीन-आधारित जेनरेटरों का उपयोग करके मौसम विश्लेषण के माध्यम से उपयुक्त बादलों की पहचान करने से शुरू होती है। इसके बाद, सीडिंग एजेंटों को लक्षित बादलों में छोड़ा जाता है। सीडिंग पार्टिकल्स बड़ी जल बूंदों के निर्माण में मदद करते हैं, जिससे वर्षा में वृद्धि होती है।
क्लाउड सीडिंग शुरू करने के लिए, बादलों को सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड, सोडियम क्लोराइड, या सूखी बर्फ (ठोस कार्बन डाइऑक्साइड) जैसे लवणों के साथ इंजेक्ट किया जाता है, जो "सीडिंग पार्टिकल्स" के रूप में कार्य करता है। ये लवण अतिरिक्त केंद्रक (न्युक्लिआई) प्रदान करने के लिए प्रकीर्णित होते हैं, जिसके चारों ओर अधिक बादल की बूंदें बन सकती हैं।
क्लाउड सीडिंग के तरीके:
हाइग्रोस्कोपिक क्लाउड सीडिंग: हाइग्रोस्कोपिक क्लाउड सीडिंग में बादलों के निचले हिस्सों में फ्लेयर्स या विस्फोटकों के माध्यम से लवण को फैलाना शामिल है। फैलाव के बाद, लवण के आकारों में वृद्धि होती है। इस विधि में सामान्यतः आयोडीन युक्त नमक (टेबल नमक) शामिल होता है। ध्यातव्य है कि दक्षिण अफ्रीका और मेक्सिको जैसे देशों द्वारा किए गए शोध में हाइग्रोस्कोपिक क्लाउड सीडिंग के सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं।
स्टैटिक क्लाउड सीडिंग: 2010 में, जिनेवा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने बर्लिन के ऊपर हवा में अवरक्त (इंफ्रारेड) को निर्देशित किया। प्रयोग से पता चला कि अवरक्त वायुमंडलीय सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड को कण बनाने में मदद कर सकता है, जो "सीडिंग पार्टिकल्स" के रूप में कार्य करते हैं और वर्षा का कारण बनते हैं।
लवण का उपयोग: इसे सबसे सामान्य विधि कहा जाता है, जिसमें सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड और शुष्क बर्फ जैसे रसायनों को एअरक्राफ्ट (विमान) का उपयोग करके या जमीन पर स्थित फैलाव उपकरणों द्वारा फैलाया जाता है।
क्लाउड सीडिंग का अनुप्रयोग:
कृषि: यह बारिश कराने में मदद करती है, जिससे सूखाग्रस्त क्षेत्रों को राहत मिल सकती है। उदाहरण के लिए, कर्नाटक सरकार ने 2017 में "प्रोजेक्ट वर्षाधारी" लॉन्च किया, जिसके तहत वर्षा प्रेरित करने के लिए रसायनों का छिड़काव करने के लिए एक एअरक्राफ्ट (विमान) का उपयोग किया गया था।
बिजली उत्पादन: क्लाउड सीडिंग विधि को पिछले 40 वर्षों के दौरान ऑस्ट्रेलिया के तस्मानिया में जलविद्युत के उत्पादन को बढ़ाने के लिए दिखाया गया है।
जल प्रदूषण नियंत्रण: क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया न्यूनतम नदी प्रवाह को बनाए रख सकती है और उद्योगों से उपचारित अपशिष्ट जल के निर्वहन के प्रभाव को कम कर सकती है।
कोहरा छंटना और चक्रवात संशोधन: अमेरिका ने 1962 में "प्रोजेक्ट स्काई वॉटर" लॉन्च किया, जिसका उद्देश्य कोहरा फैलाना, ओलावृष्टि दमन और चक्रवात संशोधन था।
वायु प्रदूषण से निपटना: क्लाउड सीडिंग की विधि का उपयोग बारिश को प्रेरित करके जहरीले वायु प्रदूषकों को शांत करने के लिए किया जा सकता है।
क्लाउड सीडिंग में शामिल चुनौतियां:
दुष्प्रभाव: क्लाउड सीडिंग में उपयोग किए जाने वाले रसायन पौधों, जानवरों, लोगों और यहां तक कि पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
असामान्य मौसम पैटर्न: इससे जलवायु पैटर्न में बदलाव हो सकता है, जैसे जिन स्थानों पर बारिश होती है, वहां बारिश को प्रोत्साहित करने के लिए वातावरण में रसायनों को जोड़ने की कृत्रिम प्रक्रिया के कारण सूखे की स्थिति का अनुभव हो सकता है।
उच्च लागत: क्लाउड सीडिंग में एअरक्राफ्ट (विमान) या फ्लेयर शॉट्स का उपयोग करके आकाश में रसायनों को फैलाना शामिल है, जिसमें भारी लागत और लॉजिस्टिक तैयारियां शामिल हैं।
प्रदूषण: क्लाउड सीडिंग की शुरुआत के बाद होने वाली बारिश में सिल्वर आयोडाइड, सूखी बर्फ या नमक जैसे सीडिंग एजेंट शामिल होंगे। क्लाउड-सीडिंग परियोजनाओं के निकट स्थानों में पाई गई अवशिष्ट सिल्वर को विषाक्त माना जाता है।
मेक्सिको, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, इंडोनेशिया और मलेशिया सहित कई देशों ने बारिश पैदा करने, हवा की गुणवत्ता में सुधार और सूखे के समय में पानी की फसल के लिए क्लाउड सीडिंग का उपयोग किया है। भारत में अब तक प्रदूषण कम करने के मकसद से क्लाउड सीडिंग की कोशिश नहीं की गई है, बल्कि सिर्फ सूखे जैसी स्थिति से निपटने की कोशिश की गई है। आवश्यक परिणाम प्राप्त करने के लिए, क्लाउड सीडिंग केवल तभी की जानी चाहिए जब मौसम संबंधी परिस्थितियाँ इसके लिए उपयुक्त हों और यदि स्थानीय वातावरण में नमी की मात्रा अपेक्षित मानदंडों को पूरा करती हो।
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