Que. Critically evaluate the feasibility of state funding of elections in India.
(GS2, 10 marks, 150 words)
प्रश्न: भारत में चुनावों के लिए राज्य द्वारा वित्तपोषण की व्यवहार्यता का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
(जीएस2, 10 अंक, 150 शब्द)
Model Answer:
State Funding of elections is an election funding mechanism where the government gives funds to political parties and candidates for contesting elections.
Advantages of State Funding of Election:
Transparency in funding: The state funding of elections fulfils the citizen’s right to know about the election funding and expenditure. Thus enhancing the transparency of the electoral process.
Fairness of the electoral process: State sponsored elections will ensure all political parties and candidates are at equal footing. This will ensure fairness of the electoral process.
Reduction in criminalisation of Politics: As per Vohra committee recommendations, the criminalisation of politics has been a result of the donation of criminal proceeds to political parties. The state funding of elections to political parties will reduce the criminalisation of politics.
Encourage citizen centric decisions: The funding of elections by the state will break the corporate-political nexus and encourage the government of the day to take citizen-centric decisions and ensure good governance.
Increased accountability: Use of public money will make the political parties more accountable to the public, as it will improve the party-public relations.
Challenges in the implementation:
Fiscal limitations: The government is grappling with the rising fiscal deficit. Putting further strain on the government exchequer, by state sponsored electoral funding, will worsen the fiscal health of the government.
Funds diversion: State funding of elections will lead to diversion of government funds from social sector which need immediate attention like Health, Education and Skill Development.
Operational challenge: Building a concensus on the criteria to be used for distribution of the funds amongst political parties and candidates, will be a huge operational challenge.
Risk of Misuse of state sponsored electoral funding: State funds for elections can be misused as many frivolous political parties may crop up to receive state subsidies, rather than running for political office and engage in development work.
Regulatory hurdles: Election commission of India has opposed state funding of elections on the ground that it would not be able to prohibit or check candidates’ expenditure, over and above which is provided for by the state.
Limited benefits due to lack of intra-party democracy: The benefits of state funding of election will be limited due to lack of intra-party democracy.
Way Forward:
255th report of the Law Commission of India’s recommendation of capping the anonymous donations must be implemented.
Ways to implement Indrajit Gupta Committee’s recommendation of ‘partial state funding’ can be explored.
The idea of National Electoral Fund, given by former chief election commissioner T.S. Krishnamurthy, can be explored as an alternative to state funding of election.
Conclusion:
Implementation of state funding of election is a desirable goal to introduce transparency in electoral funding. However, we need to devise a proper procedure for distribution of funds, with the consensus of all major stakeholders.
मॉडल उत्तर:
चुनावों के लिए राज्य निधि एक चुनावी वित्त पोषण व्यवस्था है, जहां सरकार राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने के लिए धन प्रदान करती है।
चुनाव के लिए राज्य द्वारा वित्त पोषण के लाभ:
वित्त पोषण में पारदर्शिता: चुनावों के लिए सरकारी फंडिंग नागरिकों के चुनावी वित्तपोषण और खर्च के बारे में जानने के अधिकार को पूरा करती है। इससे चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ेगी।
चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता: राज्य प्रायोजित चुनाव यह सुनिश्चित करेंगे कि सभी राजनीतिक दल और उम्मीदवार समान स्तर पर हों। इससे चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता सुनिश्चित होगी।'
राजनीति के अपराधीकरण में कमी: वोहरा समिति की सिफारिशों के अनुसार, राजनीति का अपराधीकरण राजनीतिक दलों को आपराधिक आय जनित चंदे का परिणाम रहा है। राजनीतिक दलों को चुनावों के लिए सरकारी फंडिंग से राजनीति के अपराधीकरण में कमी आएगी।
नागरिक केंद्रित निर्णयों को प्रोत्साहन: राज्य द्वारा चुनावों के वित्तपोषण से कॉर्पोरेट-राजनीतिक गठजोड़ टूट जाएगा और मौजूदा सरकार को नागरिक-केंद्रित निर्णय लेने और सुशासन सुनिश्चित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
जवाबदेही में वृद्धि: सार्वजनिक धन के उपयोग से राजनीतिक दल जनता के प्रति अधिक जवाबदेह बनेंगे, क्योंकि इससे पार्टी-जनसंपर्क में सुधार होगा।
कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियाँ:
राजकोषीय सीमाएँ: सरकार बढ़ते राजकोषीय घाटे से जूझ रही है। राज्य द्वारा चुनावी वित्तपोषण के जरिए सरकारी खजाने पर और दबाव डालने से सरकार की वित्तीय सेहत खराब हो जाएगी।
धन का विचलन: चुनावों के लिए राज्य द्वारा वित्तपोषण से सामाजिक क्षेत्र से सरकारी धन का विचलन (फंड डायवर्जन) होगा, जिस पर स्वास्थ्य, शिक्षा और कौशल विकास जैसे तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
परिचालनात्मक चुनौती: राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के बीच धन के वितरण के लिए उपयोग किए जाने वाले मानदंडों पर आम सहमति बनाना एक बड़ी परिचालनात्मक चुनौती होगी।
दुरुपयोग का जोखिम: चुनावों के लिए राज्य के कोष का दुरुपयोग किया जा सकता है, क्योंकि कई तुच्छ राजनीतिक दल राजनीतिक पद के लिए दौड़ने और विकास कार्यों में संलग्न होने के बजाय राज्य सब्सिडी प्राप्त करने के लिए उभर सकते हैं।
विनियामक बाधाएँ: भारत के चुनाव आयोग ने इस आधार पर चुनावों के लिए राज्य द्वारा वित्तपोषण का विरोध किया है कि वह राज्य द्वारा प्रदान किए जाने वाले खर्च से अधिक उम्मीदवारों के खर्च को प्रतिबंधित या जांच नहीं कर पाएगा।
अंतर-पार्टी लोकतंत्र की कमी के कारण सीमित लाभ: अंतर-पार्टी लोकतंत्र की कमी के कारण चुनाव के राज्य प्रायोजित वित्त पोषण के लाभ सीमित होंगे।
आगे का रास्ता:
भारत के विधि आयोग की 255वीं रिपोर्ट में गुमनाम चंदे की सीमा तय करने की सिफारिश को लागू किया जाना चाहिए।
इंद्रजीत गुप्ता समिति की 'आंशिक राज्य वित्त पोषण' की सिफारिश को लागू करने के तरीकों का पता लगाया जा सकता है।
चुनाव के लिए सरकारी फंडिंग के विकल्प के रूप में, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी. एस. कृष्णमूर्ति द्वारा प्रदत्त राष्ट्रीय चुनावी कोष (नेशनल इलेक्टोरल फंड) पर विचार किया जा सकता है।
निष्कर्ष:
चुनावी वित्तपोषण में पारदर्शिता लाने के लिए चुनाव के लिए राज्य प्रायोजित वित्त पोषण का कार्यान्वयन एक वांछनीय लक्ष्य है। हालाँकि, इस सांदर्भिक हमें सभी प्रमुख हितधारकों की सहमति के साथ, धन के वितरण के लिए एक उचित प्रक्रिया तैयार करने की आवश्यकता है।
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